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Today is October 2nd there must be something related to politicians.So here is.
An old poem.लोकल बस से उतरते ही
जैसे
हमने एक दोस्त से माचिस मांगी
हाथ बढ़ाकर |
कर देख रहा था एक भिखारी,
उसने भी हाथ पसार दिए |
हमने भाषण झाड़ते हुए कहा
' भीख मांगते हुए शर्म नहीं आती ' ?
वह बोला ....
मगर भिखमंगा तो यहाँ हर एक बंदा है |
आपको आई थी क्या बाबु जी ,
माचिस मांगते हुए ?
माँगना तो हमारे देश का
केरेक्टर है |
जो जितनी सफाई से मांगे ,
वह उतना ही बड़ा
एक्टर है |
सच तो यह है बाबू जी
छोटे मांगे तो भीख बड़ा मांगे तो चंदा है ?
भीख माँगना ही आज राजनीतिज्ञों का धंधा है |
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0 stones hit me....wanna throw more??:
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