कभी - कभी III

Last two days, there was no internet connectivity and couldn't post the poem completely.
Now, The third and the last part of this series, hopefully you'll like it as the earlier two. This is all about situations, this is all about mood. Different situation makes different actions suitable to perform. Kabhi yahaan kabhi wahaan
कभी ऊपर वाले का नाम भी आता नहीं ज़ुबान पर
कभी उसको भी मनाने को जी चाहता है
कभी लगती है ये ज़िन्दगी बड़ी सुहानी
कभी ज़िन्दगी से उठ जाने को दिल चाहता है
कभी रोता नहीं मैं बड़ी बड़ी बातों पर,
कभी यूं ही आँसू बहाने को जी चाहता है
कभी अच्छा लगता है आकाश में उड़ना,
कभी किसी बन्धन में बँध जाने को जी चाहता है
कभी अपने भी लगते हैं बेगाने से,
कभी बेगानों को भी अपनाने को जी चाहता है
कभी मन चाहे सारी दुनिया की दौलत,
कभी अपनी भी गवाँने को जी चाहता है
कभी मन चाहे नया जीवन,
कभी इसे भी मिटाने को जी चाहता है

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