This is all about my experiences about my first year[2 years ago], as we came here with joy and a lot more expectation but finally all our enthusiasm just go in vein.The system somehow made us lazy and sleepy.At starting of sem many of us take oath to do something extra-ordinary but finally we all repeat the same thing each and every time.
Anyways my first year at this place was just awesome.
Enjoyed a lot.Yeaaaaaaaaah.
Anyways my first year at this place was just awesome.
Enjoyed a lot.Yeaaaaaaaaah.
These lines belong to Alok.
He is a fantastic poet.You'll certainly like this.
बी.टेक. करने आये थे हम,
मन में थी कितनी आशायें ।
धीरे धीरे समय जो बीता,
कुछ ना हमको समझ में आये,
भूल गयी अब सारी दिशायें ।
सोचा था हम खूब पढ़ेंगे,
नयी ऊँचाईयों पर चढ़ेंगे ।
अच्छे अच्छे शिक्षक होंगे,
बन कुम्हार वो हमे गढ़ेंगे ।
मिल गये हमें सब रट्टु तोते,
जो हैं साले फ़र्रे लाते ।
टीप टीप कर उससे पूरा,
ब्लैक बोर्ड हैं भरते जाते ।
अगले दिन की क्लास जो अपनी,
उसकी कापी पढ़ती जपनी ।
कैमिस्ट्री हो या हो ईडी
घोंट के हमको जानी पड़ती ।
फाईल छापो लैब में जाओ,
नहीं हुआ तो रीडिंग बनाओ ।
वर्कशॉप भी करते थे हम,
बिन वर्कर के डरते थे हम ।
कुछ ना हमको समझ में आये,
भूल गयीं तब सारी दिशायें ।
कुछ दिन यहाँ जो बीत गये,
मिले जुले कुछ मीत भये ।
प्रॉक्सी ने तब खूब बचाया,
मास बंक का फंडा आया।
तब पहला इक्ज़ाम जो आया,
हम पर गहरा संकट छाया।
संकटमोचन पॉन्डी आया,
पेपर बुक वो पुराने लाया।
भीड़ लगे,
जब पॉन्डी आये।
कुछ ना हमको समझ में आये,
भूल गयीं तब सारी आशायें।
पहली बार तो खूब पढ़े हम,
तो क्या साला खाक उखाड़ा।
धीरे धीरे समझ आ गया,
कॉलेज का सब फ़र्ज़ीवाड़ा।
कुछ लोग यहाँ होशियार भी थे,
सब कुछ करने को तैयार भी थे।
कॉपी बदल लो डेस्क पे लिख लो,
ये सब कारनामे करवाये।
कुछ ना हमको समझ में आये,
भूल गयी तब सारी दिशायें।
धीरे धीरे डर बढ़ने लगा था,
रैगिंग का भूत सर चढ़ने लगा था।
हम तो बड़े नादान थे उस बखत,
साला सीनियर भी अकड़ने लगा था।
उनके सामने जो हमारी फ़टती थी,
सुबह बुला लिया तो रात नहीं कटती थी।
पर अब हम बहुत कुछ सीख चुके थे,
कुछ खुशी कुछ गम की बारिश में भीग चुके थे।
फिर वो रात फ़्रेशर की आयी,
लुढ़क गये पी के सब भाई।
लड़की के पीछे कोई नहीं भगा था,(लड़की होगी तब तो)
सबका ध्यान तो चिकन दारू पर ही लगा था।
कुछ खट्टे कुछ मीठे लम्हे आयेंगे ना अब दोबारा,
इसके साथ ही बीत गया फ़र्स्ट ईयर अपना प्यारा।
P.S.-Alok reached national level of BaalShree for his poetic skills
2 stones hit me....wanna throw more??:
बहुत ही सुन्दर शब्दों....बेहतरीन भाव....खूबसूरत कविता...
@ संजय भास्कर :
धन्यवाद
आपकी टिप्पणियों के लिये आभार ।
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