आज की ताजा खबर- एक और बड़ा घोटाला। लगाओ पुराने पर ताला। हर पुराने घोटाले पर एक नया घोटाला ऐसा ही ताला ठोंक रहा है। एक तरह से हर नया घोटाला पुराने को निपटाने की चाबी बनता जा रहा है। हर नए के साथ कुछ ऐसे शब्द जुड़ जाते हैं- अब तक का सबसे बड़ा घोटाला, देश को बेच डालने का इससे बड़ा उदाहरण दूसरा नही, इतना शर्मसार तो देश पहले कभी नहीं हुआ, इस खुलासे ने देश को कलंकित कर दिया। ऐसा लगता है मानो इसके पहले देश में अब तक जो घटा वो तो कुछ था ही नहीं। असल में ताले उन घोटालों पर नहीं हमारी याददाश्त, हमारी सोच हमारे सरोकारों पर लगते हैं। कुछ घंटो, दिनों या सप्ताह भर पहले तक हम जिस मुद्दे पर घंटों घर, दफ्तर, पान की दुकानों पर बहस करते नजर आते थे। राजनीतिक दल पुतला फूंक तमाशा, धरने, रैली, भाषण में व्यस्त थे। जनता की अदालत में ऐसा माहौल बन जाता था कि आवाज निकलने लगती थी कि ऐसे घोटाले बाज को सरेआम फांसी देनी चाहिए, चौराहे पर ‘सार्वजनिक अभिनंदन करना’ चाहिए। देशप्रेम से भरे हम मुट्ठी ताने, आंखों में खून उतर आने की हद तक बहस करते हैं। फिर अचानक एक नया मामला और पुराना गुस्सा, विरोध सब हम ऐसे याददाश्त से हटा देते हैं जैसे दिमागी कंप्यूटर के डिलीट का बटन दबा दिया गया हो। शायद हम भारतीय विरासत में मिली इन पंक्तियों को भी जीवन में आत्मसात कर चुके हैं- बीती ताहि बिसार दे।
अब घोटाले के बदलते रूप और उसके बढ़ते कद, घटती शर्म को देखते हैं। अभी कुछ सप्ताह पहले तक कॉमनवेल्थ खेलों के घपले पर पूरा देश शर्मिंदगी महसूस कर रहा था। मुख्य कर्ताधर्ता सुरेश कलमाडी खलनायक दिखाई दे रहे थे। खेल के उद्घाटन में भी उनकी जमकर हूटिंग हुई। पर वे पूरी शान से सूट-बूट डालकर जमे रहे। बार-बार कहा मैं बेदाग हूं, रहूंगा। ये आत्मविश्वास उनमें था, क्योंकि वे बड़े खिलाड़ी जमे, तपे राजनेता हैं। वे आम भारतीय नहीं हैं जो दरवाजे पर हवलदार की दस्तक से ही खाना-पीना छोड़ देता है। कलमाडी ने आने वाला कल देख लिया था। वे निश्चिंत रहे होंगे कि एक घोटाला आएगा और मेरे कु-कर्म सब भूल जाएंगे। हर विवादित आदमी किसी अन्य विवादित का भला ही करता है। जैसे आईपीएल के गवर्नर ललित मोदी को राहत दी कलमाडी ने और कलमाडी को पछाड़ कर सामने आए नए खलनायक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण। आदर्श हाउसिंग सोसायटी घोटाला लेकर। दुनिया में सारे रिकॉर्ड टूटने के लिए ही बनते हैं और कोई भी शिखर पर लंबे समय तक नहीं रह सकता। ऐसे में घोटाले के शिखर पुरुष भी बदलने ही हैं। आजकल तो होड़ लगी है। झारखंड से निपटो तो कर्नाटक का नाटक, वहां से निकले तो खेलगांव और अब महाराष्ट्र। अगले कुछ महीने, सप्ताह तक अशोक चव्हाण ‘आदर्श मेडल’ लेकर घूमते रहेंगे। देश के किसी कोने में, किसी दफ्तर में या किसी सदन में कोई नया घोटालेबाज अशोक चव्हाण को रिप्लेस करने के लिए दंड पेल ही रहा होगा। इंतजार करिए जल्द सामने होगा एक नया आदर्श। ऐसा कि आप भूल जाएंगे सारी पुरानी बातें। अब जरा उनको याद कर लें जो अपने-अपने वक्त में इस खेल के महानायक रह चुके हैं। आईपीएल के कर्ताधर्ता ललित मोदी पर एक साथ कई जांच कमेटियों ने नकेल कसने का दिखावा किया। बावजूद उसके उन्हें सेफ पैसेज दिया गया देश छोड़ने का। जब वे सात समंदर पार जाकर बैठ गए उनके खिलाफ इंटरनेशनल वारंट जारी कर दिया गया। अब ढूंढ़ते रहो। कोई आश्चर्य नहीं थोड़े दिन बाद मोदी किसी दूसरे देश में अपनी एक अलग क्रिकेट लीग चलाते नजर आएं। गुलशन कुमार हत्या के आरोपी नदीम भी लंदन में बैठे हैं। वे वहां से भारतीय फिल्मों में संगीत भी दे रहे हैं।
हर्षद मेहता को लोग भूल चुके हैं। बोफोर्स, बिहार का चारा, सत्यम के संस्थापक राजू, सांसद खरीदी और हत्या में उलझे शिबू सोरेन, सदन में सवाल पूछने के बदले पैसा लेने वाले सांसद सब धीरे-धीरे विस्मृत होते जा रहे हैं। फिल्म स्टार्स को देखिए, संजय दत्त, सलमान खान पर बड़े मामले चल रहे हैं। फिर भी दोनों जनता के लाडले बने हुए हैं। उन्हें फिर मौका मिल गया अकड़ कर दबंगई करने का। जिन्हें कहीं मौका नहीं मिलता उनके लिए बिगबॉस है ही।
दरअसल इस सबमें पब्लिक का भी ज्यादा दोष नहीं। कोई भी चीज लंबे समय तक टिकती ही नहीं। सत्तर के दशक में घोटाला बे्रकफास्ट की तरह था तो 80 में लंच की तरह स्वीकार्य हो गया। 90 में लंच डिनर दोनों हुआ तो 2000 के बाद यह आल इंडिया भंडारे की तरह हर कोने में आयोजित होने लगा। पहले चीजें टिकाऊ थीं, याद रहती थीं अब इतनी तेजी से बदलाव होता है कि क्या-क्या याद रखें। पहले वनस्पति घी यानी डालडा, घोटाला यानी बोफोर्स, रथयात्रा यानी आडवाणी, भाषण तो अटल बिहारी, फिल्म...शोले तो हीरो...अमिताभ बच्चन, क्रिकेटर... कपिलदेव! देश ने इनके साथ ही करीब बीस साल गुजार दिए। फिर ऐसा दौर आया, तरह तरह के वनस्पति घी, रिफाइंड तेल। हीरो हर दिन नया। घोटालों की लाइन लग गई। हर राजनेता यात्री बन बैठा। क्रिकेट में इतने मैच कि हर घंटे नया हीरो। हाल ही में आगरा के दीपक ने दस रन देकर आठ विकेट लेकर नया रिकॉर्ड बना दिया। फिल्में टिकती ही नहीं। 25 साल तक शोले नंबर वन रही फिर उसका रिकॉर्ड दिलवाले दुलहनिया ले जाएंगे ने तोड़ा। इसके बाद कोई रिकार्ड नहीं बचा, गजनी, थ्री इडियट और ताजा हिट रोबोट। अब बेचारा आदमी कितना याद रखे। कुल मिलाकर यह देश, जांच समितियां और जनता फिल्म गजनी की तरह शार्ट टर्म मेमोरी लॉस के शिकार हो गए हैं। वे उन्हीं चीजों को याद रखते हैं जो उन्हें सामने दिखाई देती है। जैसे गजनी में आमिर खान को अपनी याददाश्त बनाए रखने के लिए शरीर पर नाम, नंबर गुदवाकर रखने पड़ते थे। वह दर्पण के सामने खड़ा होकर उन्हें देखता था और फिर याददाश्त ताजा और दुश्मन का खेल खत्म।
जरूरत है गजनी की तरह पूरा देश अपने पास घोटालेबाजों के नाम, नंबर और तस्वीर रखे। उन्हें रोज देखता रहे ताकि वे बच न सके और देश की सही तस्वीर बन सके, नहीं तो यही कहते रहेंगे रात गई बात गई।
सजा या मजा!
असल में हर घोटाले या लापरवाही पर सजा के नाम पर सिर्फ स्थान परिवर्तन होता है। यानी लाइन अटैच। देश पर हुए सबसे बड़े आतंकी हमले को भी हमने वैसे ही भुला दिया।
उस वक्त महाराष्ट्र के गृहमंत्री रहे आर आर पाटिल हटा दिए गए थे। आज वे फिर उसी महाराष्ट्र में गृहमंत्री हैं। मुख्यमंत्री पद से हटाए गए विलासराव देशमुख अब एक कदम आगे केंद्र में भारी मंत्री हैं। अशोक चव्हाण यदि राज्य से हटाए गए तो वे केंद्र में दिखेंगे। कलमाड़ी, संभव है ओलंपिक की तैयारी में लग जाएं और ललित मोदी विश्वकप क्रिकेट टूर्नामेंट में दिख जाएं।
कभी भारतीय टीम से मैच फिक्ंिसग के आरोप में बाहर धकेले गए खिलाड़ी आज पहले से बड़े मुकाम पर हैं। कोई सांसद बन गए तो कोई क्रिकेट एक्सपर्ट और काम भी ऐसा कि रोज टीवी पर दिखते हैं पूरी शान से। कल जो खलनायक थे ‘वक्त’ उन्हें फिर से नायक बना देता है।
स्कैम स्कैन
-जनवरी, 2009 में सत्यम कंप्यूटर घोटाला। सॉफ्टवेयर कंपनी सत्यम कंप्यूटर के चेयरमैन बी रामलिंगा राजू ने 7,000 करोड़ का घपला स्वीकारा।
-जनवरी, 2008 में प्रकाश में आए 2जी स्पैक्ट्रम लाइसेंस आवंटन के मामले में घोटाले की अनुमानित राशि 60 हजार करोड़ रुपये सामने आई।
-2001 में तहलका कांड में बड़े नेताओं, अधिकारियों को रिश्वत लेते दिखाया गया। खुलासा हुआ कि रक्षा सौदों में भी घोटाले हुए हैं।
-1995 में फर्जी स्टांप पेपर की आपूर्ति के मामलों में 30,000 करोड़ रु. का घोटाला सामने आया।
-1995 में ही बिहार में राजद सरकार के दौरान सामने आया 950 करोड़ रुपये का चारा घोटाला।
courtesy: 06/11/2010, Zindagi Live, Amar Ujala
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3 stones hit me....wanna throw more??:
अरे आप तो हिन्दी और अंग्रेजी दोनो में बेहतरीन लिखते हैं। हिन्दी में और क्यों नहीं लिखते।
@ उन्मुक्त :
i have to use a converter of English to Hindi so i write less in Hindi.Also not getting much time after my studies. So can't exercise more for that.
Its really nice to see you here.
Hope to see your views and comments in future. :)
अरे आप तो हिन्दी और अंग्रेजी दोनो में बेहतरीन लिखते हैं। हिन्दी में और क्यों नहीं लिखते।
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